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Wednesday, 11 October 2017

यादवों का एक ऐसा अनसुना इतिहास

प्राचीन संदर्भ[संपादित करें]

जयंत गडकरी के कथनानुसार, " पुराणों के विश्लेषण से यह निश्चित रूप से मान्य है कि अंधक,वृष्णि, सत्वत तथा अभीर (अहीर) जातियों को संयुक्त रूप से यादव कहा जाता था जो कि श्रीक़ृष्ण की उपासक थी। परंतु यह भी सत्य है कि पुराणों में मिथक तथा दंतकथाओं के समावेश को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पौराणिक संरचना के तहत एक सुद्र्ण सामाजिक मूल्यो की प्रणाली प्रतिपादित की गयी थी।"[9]
लुकिया मिचेलुत्ती के यादवों पर किए गए शोधानुसार -
यादव जाति के मूल में निहित वंशवाद के विशिष्ट सिद्धांतानुसार, सभी भारतीय गोपालक जातियाँ, उसी यदुवंश से अवतरित हैं जिसमें श्रीक़ृष्ण (गोपालक व क्षत्रिय) का जन्म हुआ था .....उन लोगों में यह दृढ़ विश्वास है कि वे सभी श्रीक़ृष्ण से संबन्धित हैं तथा वर्तमान की यादव जातियाँ उसी प्राचीन वृहद यादव सम समूह से विखंडित होकर बनी हैं।[10]

वर्तमान परिपेक्ष्य[संपादित करें]

क्रिस्टोफ़ जफ़्फ़ेर्लोट के अनुसार
यादव शब्द कई उपजातियों को आच्छादित करता है जो मूल रूप से अनेक नामों से जानी जाती है, हिन्दी क्षेत्र, पंजाब व गुजरात में- अहीर, महाराष्ट्र, गोवा मे- गवली, आंध्र व कर्नाटक में- गोल्ला, तमिलनाडु मे - कोनर, केरल मे- मनियार जिनका सामान्य पारंपरिक कार्य चरवाहे, गोपालक व दुग्ध-विक्रेता का था।[11]

लुकिया मिचेलुत्ती के विचार से -
यादव लगातार अपने जातिस्वरूप आचरण व कौशल को उनके वंश से जोड़कर देखते आये हैं जिससे उनके वंश की विशिष्टता स्वतः ही व्यक्त होती है। उनके लिए जाति मात्र पदवी नहीं है बाल्कि रक्त की गुणवत्ता है, और ये द्रष्टव्य नया नहीं है। अहीर (वर्तमान मे यादव) जाति की वंशावली एक सैद्धान्तिक क्रम के आदर्शों पर आधारित है तथा उनके पूर्वज, गोपालक योद्धा श्री कृष्ण पर केन्द्रित है, जो कि एक क्षत्रिय थे। [12]

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