प्राचीन संदर्भ[संपादित करें]
जयंत गडकरी के कथनानुसार, " पुराणों के विश्लेषण से यह निश्चित रूप से मान्य है कि अंधक,वृष्णि, सत्वत तथा अभीर (अहीर) जातियों को संयुक्त रूप से यादव कहा जाता था जो कि श्रीक़ृष्ण की उपासक थी। परंतु यह भी सत्य है कि पुराणों में मिथक तथा दंतकथाओं के समावेश को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पौराणिक संरचना के तहत एक सुद्र्ण सामाजिक मूल्यो की प्रणाली प्रतिपादित की गयी थी।"[9]
लुकिया मिचेलुत्ती के यादवों पर किए गए शोधानुसार -
“ | यादव जाति के मूल में निहित वंशवाद के विशिष्ट सिद्धांतानुसार, सभी भारतीय गोपालक जातियाँ, उसी यदुवंश से अवतरित हैं जिसमें श्रीक़ृष्ण (गोपालक व क्षत्रिय) का जन्म हुआ था .....उन लोगों में यह दृढ़ विश्वास है कि वे सभी श्रीक़ृष्ण से संबन्धित हैं तथा वर्तमान की यादव जातियाँ उसी प्राचीन वृहद यादव सम समूह से विखंडित होकर बनी हैं।[10]वर्तमान परिपेक्ष्य[संपादित करें]
क्रिस्टोफ़ जफ़्फ़ेर्लोट के अनुसार
लुकिया मिचेलुत्ती के विचार से -
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