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Sunday, 29 October 2017

Whatsapp को टक्कर दे रहा है भारतीय एप्प ChatUp

 दोस्तों whats app को टक्कर देने के लिये भारत में launch हुआ ChatUp .whatsapp के जरिये भारतीयों का पैसा विदेशो में जा रहा है इसलिए आप chatup भारतीय app को install करके लोगो को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें । ये बिल्कुल safe है 100% । अपनी आदत को बदलें whatsapp नहीं chatUp का use करें
https://www.mediafire.com/file/94e9tgvk9or9v7x/-ChatUp_5871676.apk

Monday, 23 October 2017

sachin yadavendra

जीवन का लक्ष्य एक अच्छी कहानी / Jivan ka Lakshy Ek Achhi Kahani – 

दोस्तों एक लड़का था उसे बचपन से ही Achhi पुस्तके पढने का शौक था और वह हमेशा विभिन प्रकार की Books पढता रहता था लेकीन उसके लड़के की एक आख ख़राब थी जिसके चलते वह जब पुस्तको का study करता था तो उसके आखो पर बहुत अधिक जोर पढता था जिसके कारण आगे चलकर उसके आखो में दर्द की शिकायत होने लगी थी और फिर Doctor ने उसे पढने से मना कर दिया और कहा की यदि तुम अपनी दूसरी आख पर ज्यादा जोर दोगे ये आख भी ख़राब हो सकती है लेकीन वह लड़का doctor की बात नही माना और अपनी पढाई जारी रखा
लेकिन उसके Family वाले जब उसको समझाने लगे तो उसने कहा की मै तभी पढना बंद कर सकता हु जब कोई मुझे ये Books पढकर सुनाता रहे तो उसके घर वाले तैयार हो गये
तब वह लड़का इसी तरह पढता रहा और उसके घर वालो को जब खाली Time मिलता तब उसे उसके Books पढ़कर सुना देते जिससे वह लड़का याद कर लेता
और वह लड़का अपनी दृढ इच्छा के चलते वह अपनी MA की भी Exam पास कर लिया और फिर वह लड़का आगे भी नही रुका
और अपनी पढाई जारी रखा और फिर उसने अपने Thoughts दुसरो की Help से लिखवाता और फिर जब उसकी लिखी गयी लेख के विषय पुस्तक में छपने लायक हो जाता था तो वह उनको Books में छपवा देता था
इस प्रकार उस लडके ने कई महान पुस्तके लिखी जो की life की सकरात्मक पहलु को दर्शाते थे पता है दोस्तों यही लड़का आगे चलकर France के मशहूर दार्शनिक Jya Pal Satra के नाम से मशहूर हुआ

कहानी से शिक्षा – 

तो दोस्तों देखा आपने यदि हमारे मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो हम चाहे कितने ही मजबूर क्यू न हो हम अपनी मंजिल किसी भी हालत में पा लेते है
दोस्तों जैसा की हम सब जानते है की life की दूसरा नाम ही Struggle ही है यदि हम सोचे हमे बिना कुछ किये हुए ही सबकुछ मिल ऐसा होना कदापि Possible नही है
लोग अक्सर बड़ी आसानी से कह देते है की हमारे पास Power या इतना Time नही है की हम इस Work को Kare लेकिन दोस्तों क्या आप ने सोचा की जो लोग इतना अपने Body से अक्षम होते हुए भी बड़े बड़े मुकाम हाशिल कर लेते है तो हम शरीर से हस्ट पुष्ट होते हुए भी क्यू बहाने बनाते है
ऐसा इसलिए होता है या तो हम उस काम को करना ही चाहते है या उस काम को करने से से होने वाले होने वाले फायदे और नुकसान का तर्क पहले से ही लगाने लगते है जबकि आप कोई भी Work पूरी Planning के साथ करेगे तो निश्चित ही सफलता आपको ही मिलेगी
दोस्तों पता है जितने भी Great People हुए है वे शुरू में बहुत ही कमजोर हुए है या उनका बचपन बहुत ही गरीबी में बिता है लेकिन यदि मन में कुछ करने की इच्छा हो तो हमारी शारीरिक कमजोरी कभी हमारे आड़े नही आती है जो लोग महान होते है वे अपने कमजोरी को ही अपना Power बना लेते है और फिर अपने लक्ष्य की ओर हमेसा आगे बढ़ते रहते है

sachin yadavendra

सुदामा और श्रीकृष्ण की दोस्ती / SUDAMA AUR KRISHN KI DOSTI –

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती बहुत ही खास है क्यू इनकी दोस्ती हमे सिखलाती है हम चाहे कितने भी अमीर क्यू न हो जाए अगर हमने किसी को अपना दोस्त बनाया है चाहे वो दोस्त बचपन का ही क्यू न हो अगर हम समय के साथ चाहे कितने अमीर भी क्यू न हो जाए अगर हमारा मित्र हमसे थोड़े से भी कष्ट में हो तो हमे बिना समय गवाए उसके दुःख में साथ देना ही मित्रता की सच्ची साथर्कता कहलाती है
और इनकी दोस्ती से हमें ये भी पता चलता है की हम चाहे कितने ही विकट स्थिति में क्यू न हो लेकिन हम कभी भी अपने मित्र को अपने दुखो के चलते उसे कभी कष्ट नही देना चाहेगे क्यू मित्रता में चाह की नही त्याग की भावना सर्वोपरि होती है

sachin yadavendra

झाँसी की रानी— सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

Sachin yadavendra

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

Wednesday, 11 October 2017

यादवों का एक ऐसा अनसुना इतिहास

प्राचीन संदर्भ[संपादित करें]

जयंत गडकरी के कथनानुसार, " पुराणों के विश्लेषण से यह निश्चित रूप से मान्य है कि अंधक,वृष्णि, सत्वत तथा अभीर (अहीर) जातियों को संयुक्त रूप से यादव कहा जाता था जो कि श्रीक़ृष्ण की उपासक थी। परंतु यह भी सत्य है कि पुराणों में मिथक तथा दंतकथाओं के समावेश को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पौराणिक संरचना के तहत एक सुद्र्ण सामाजिक मूल्यो की प्रणाली प्रतिपादित की गयी थी।"[9]
लुकिया मिचेलुत्ती के यादवों पर किए गए शोधानुसार -
यादव जाति के मूल में निहित वंशवाद के विशिष्ट सिद्धांतानुसार, सभी भारतीय गोपालक जातियाँ, उसी यदुवंश से अवतरित हैं जिसमें श्रीक़ृष्ण (गोपालक व क्षत्रिय) का जन्म हुआ था .....उन लोगों में यह दृढ़ विश्वास है कि वे सभी श्रीक़ृष्ण से संबन्धित हैं तथा वर्तमान की यादव जातियाँ उसी प्राचीन वृहद यादव सम समूह से विखंडित होकर बनी हैं।[10]

वर्तमान परिपेक्ष्य[संपादित करें]

क्रिस्टोफ़ जफ़्फ़ेर्लोट के अनुसार
यादव शब्द कई उपजातियों को आच्छादित करता है जो मूल रूप से अनेक नामों से जानी जाती है, हिन्दी क्षेत्र, पंजाब व गुजरात में- अहीर, महाराष्ट्र, गोवा मे- गवली, आंध्र व कर्नाटक में- गोल्ला, तमिलनाडु मे - कोनर, केरल मे- मनियार जिनका सामान्य पारंपरिक कार्य चरवाहे, गोपालक व दुग्ध-विक्रेता का था।[11]

लुकिया मिचेलुत्ती के विचार से -
यादव लगातार अपने जातिस्वरूप आचरण व कौशल को उनके वंश से जोड़कर देखते आये हैं जिससे उनके वंश की विशिष्टता स्वतः ही व्यक्त होती है। उनके लिए जाति मात्र पदवी नहीं है बाल्कि रक्त की गुणवत्ता है, और ये द्रष्टव्य नया नहीं है। अहीर (वर्तमान मे यादव) जाति की वंशावली एक सैद्धान्तिक क्रम के आदर्शों पर आधारित है तथा उनके पूर्वज, गोपालक योद्धा श्री कृष्ण पर केन्द्रित है, जो कि एक क्षत्रिय थे। [12]